Corona se samna - 1 in Hindi Motivational Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | कोरोना से सामना - 1

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कोरोना से सामना - 1

गत वर्ष कोरोना कहर बनकर बरपा था।इसलिए नववर्ष यानी 2021 के आगमन पर सरकार के साथ हमने भी मान लिया था कि हमने जंग जीत ली है।कोरोना को हरा दिया है।देश से दूर भगा दिया है।लेकिन यह मुंगेरी के हसीन सपने ही निकले।होली से पहले ही उसने रंग दिखाना शुरू कर दिया।और होली के बाद तो उसने ऐसी रफ्तार पकड़ी की सरकार की सांस भी फूलने लगी।
गत वर्ष होली मेंरे जीवन मे हाहा कार लेकर आयी थी। अंग्रेजी कलेंडर के हिसाब से गत वर्ष होली 9 march को थी।इस साल 28 march को ।गत वर्ष उस होली को मैं कभी नही भूल पाऊंगा ।24 फरवरी को मेरा बेटा बीमार हुआ और रात को अचानक तबियत ज्यादा बिगड़ने पर में एएस एन अस्पताल की इमरजेंसी में ले गया।उसे पेशाब की परेशानी के साथ सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी।प्राथमिक उपचार से कुछ राहत मिलने पर सुबह उसे आई सी यू वार्ड में शिफ्ट कर दिया।नाम आई सी यू था।लेकिन जनरल वार्ड से भी बुरी हालत थी।अव्यस्था, गन्दगी और किसी तरह की सुविधा नही।
यहां पर बेटे की स्थिति में सुधार नज़र नही आ रहा था।25 फरवरी का दिन और रात जैसे तैसे बीते।26 फरवरी को बेटे राजीव का बर्ताव मुझे असामान्य लग रहा था।मैं बार बार पूछ रहा था,"तबियत कैसी है?"
वह एक ही जवाब देता,"पापा, मैं ठीक हूँ।मुझे घर ले चलो।"
मैं जानता था।वह यह क्यों कह रहा है।बीमार तो वह पिछले एक साल से ज्यादा से चल रहा था।कारण व्यापार में घाटा और नुकसान होने पर सूदखोरों से मेरी जानकारी के बिना भारी सूद पर कर्ज ले लेना।उसने मुझे कभी इस बारे में नही बताया।मैं तब भी नही समझ पाया जब वह दुकान को नौकर के सहारे छोड़कर गायब रहता या मेरे से किसी बहाने पैसे ले जाता।
यहाँ मैं इस पूरे प्रसंग को नही उठा रहा क्योंकि यह मेरे उपन्यास "वो चालीस दिन और लोकडौन" मे आप विस्तार से पढ़ ।सकेंगे।
एस एन में तबियत ज्यादा बिगड़ जाने पर उसे सिनर्जी प्लस अस्पताल में भर्ती कराया।उसे सांस लेने में भारी दिक्कत थी।वहाँ डॉक्टर उसे देखकर हताश थे।लेकिन मेरे भतीजे डॉ प्रभात की वजह से डॉक्टरों ने अच्छे प्रयास किये और खतरे के 24 घण्टे गुज़र गए।
लेकिन बाद के दिनों में वे किडनी का इलाज भी नही कर पाए और दूसरी बीमारी भी लगा दी।आई सी यू में वेन्टीलेटर पर रखकर और लगातार dilasis करने और तरह तरह के चेक कराने के बाद भी सिनर्जी प्लस के डॉक्टर डाइग्नोसिस नही कर पाए।मैं रोज डॉक्टरों से मिलता और वे मुझे कन्फ्यूज्ड नज़र आते।या मुझे लगता वे सिर्फ मेरा बिल बढ़ा रहे है।उसकी तबियत दिन प्रतिदिन और बिगड़ती जा रही थी।9 मार्च होली के दिन मै सुभाष के साथ डॉ प्रभात के अस्पताल वेदांता जॉइंट और हड्डी का है कारगिल गया।मेरे से बात करने के बाद प्रभात बोला,"अंकलजी आप अस्पताल चलो।मैं मरीजो को देखकर आता हूँ।"
डॉ प्रभात ने आने से पहले डॉ त्यागी और अन्य को फोन कर दिए थे।डॉ तरुण तो मिल गए लेकिन और कोई डॉक्टर नही आया।डॉ प्रभात मेरे से बोले", यह खुद ही होपलेस नज़र आ रहा है।इलाज क्या करेगा?दो दिन बाद ये लोग हाथ खड़े करें।उससे पहले आप ही जयपुर ले जाओ।^
मेरी पुत्रवधू से उस अस्पताल का एक कम्पाउण्डर भी कह रहा था,"आप भैया को दिल्ली या जयपुर ले जाओ।यहां इनसे इलाज नही होगा।"
मैं डॉक्टर प्रभात की बात सुनकर बोला,"आप यहां से डिस्चार्ज करा दीजिये।"
क्रमश